Friday, December 14, 2018

मुझे माफ करो !! ... it's enough already...


अनचाहे रिश्तों, मुझे माफ़ करो !
बेवजह की जिम्मेदारियों, मुझे माफ़ करो !

मैं मुकरना, ठहरना चाहती हूँ ! 
कुछ रुककर , बिछड़ना चाहती हूँ !! 

ये दौड़ मेरी नहीं , ये मोड़ मेरा नहीं ! 
मेरा सफर कुछ ओर था !
मेरा पहर कुछ ओर था !! 

ए संगदिल ख्वाहिशों , मुझे माफ़ करो ! 
बेमन मुस्कुराहटों , मुझे माफ़ करो !! 

मैं सिसकना, टूटना चाहती हूँ ! 
मैं गिरना , संभलना चाहती हूँ !! 

मैं अपना सफर चाहती हूँ !
मैं अपना पहर चाहती हूँ !! 

मैं बगावत चाहती हूँ ! 
हाँ , मैं अपना सफर चाहती हूँ !! मुझे माफ़ करो !! 

                                               जाफर खान 

Saturday, October 20, 2018

आदत ( Aadat )




















कितने साल गुजर गये हमें मिले हुए ? जून में पूरे 29 साल !! और आज तक ? 29 साल 6 महीने ! तुम्हारे घर के मेहमान खाने में बैठा सोच रहा था, यही बोलूंगा ! पर कुछ बोल ही नहीं पाया ! नज़र तुम पर टिक गयी और जुबां ने साथ ही छोड़ दिया !
                                       
 अजीब माज़रा है! यकीन मानिये , जो लोग मुझे जानते है उन्होंने मुझे खामोश नहीं देखा होगा ! खैर...

एक कप चाय में हुई ये मुलाक़ात बहुत कुछ पीछे छोड़ गई ! जो लोगों से मिलते थे , आज खुद मिल रहे थे ! जाते वक़्त आँखों में गिरे तिनके ने थोड़ा परेशां किया वरना ख़ुशी जन्नत सी थी !

थोड़ा अजीब लगा , जब मैंने अपनी पुरानी आदतें तुममे देखी ! बिना खत खोले , खबर जानने की उत्सुकता ! बैठक खाने में रिकार्डिंग और पेन से केप को अलग करके रखना ! मेरी इन्ही आदतों से तुम परेशान थी ना ! फिर ये क्या ....

हमने ज्यादा बात नहीं की ! वक़्त ही नहीं मिला ! या यूँ कहो की , बात करने के लिए वक़्त ही नहीं था ! तुम्हारी आदतों ने , हमारे  29 साल पुराने बहाने को मार दिया ! ये 29 साल , तुमने मुझे अपने करीब रखा और मैंने तुम्हे खुद से अलग !

... शायद इसलिए ....  तिनके का बहाना मुझे कुछ जरुरी सा लगा !

                                                                                         जाफर खान


Sunday, June 3, 2018

जिद् और सफलता

















हम दोस्तों में एक शख़्स ऐसा भी था जो आगे जाकर एक सफलतम इंसान बना और हमारा गौरव भी !
ये एक सफलता थी या कुछ और , मैं समझ नहीं पाया ! 

                           प्रशांत , जिसको कभी अपने हरपल मैं जिंदगी गुजारनी थी, आज हमसे बहुत अलग खड़ा था ! वह उस मोड पर ही हमसे अलग हो गया था , जिस पल किसी ने उसे सफलता की परिभाषा समझाकर चुनौती दी थी ! 
                           परिवार का मुखिया , २२ साल का नौजवान आज उस दौड़ में शामिल था , जिस दौड़ में उसे ना चाहकर भी जीतना पड़ा ! आखिर क्या चाहता था वह ? दौलत या शोहरत ? जहां तक मुझे याद है ,  वह चंचल , थोड़े से में खुश, आज़ाद परिंदा था , भीड़ से बहुत अलग ! फिर क्यूं किसी के कहने भर से उसने अपने ख़यालो को मात दी और चुनौती को जीत में बदलने की ताउम्र कोशिश की !!

इस तरह खुद को बदलने की वजह किसी का बिछड़ना तो थी, पर बिछड़ने की वजह उसकी जिद्द का असल मूल बनी ! वह चाहकर भी उन बातों से अलग नहीं हो पाया जो किसी के लिए एक बहाना मात्र थी ! इस दौर के नौजवान खुद को सफलता के पिंजरे में कैद करते जा रहे थे , और खुद को तनहा ! वजह जो हो !! 

मैं उससे अपने आखिर दौर में फिर मिला , चूँकि मैं उसके दिल के करीब था उसने मुझसे अपनी अपार सफलता का रहस्य साझा किया ! जिसे सुनकर मेरा दिल अपने दोस्त के लिए बेचैन हो गया, और ना चाहते हुए भी मुझे उसे, उस हालात में छोड़ना पड़ा ! 

वह रहस्य था " नाराजगी "! " जिंदगी से उसकी नाराजगी " !! 

वह आज सफल था !  पर खुश ?  ये मैं नहीं जानता ! 

                                                                  ... जाफर खान 

Tuesday, February 3, 2015

गरम चादर : Small mistake "A long time ago"

Small mistake "A long time ago"

















आवाज देती थी सुखन ,  मुझको नदी के पार से !
और मैं बेबस आदमी , चप्पु चलाने  से डर गया !!
फिर शिकायत करता रहा , उस अँधेरी रात का !
हाथ पर  मैं हाथ रख कर , मुश्किलों से डर गया !!

                                                 उम्र के 60 साल काटने  के बाद आज में अपनी नाकामी की वजह जान पाया हूँ ! मैं
शायद तब भी बेबसी का चश्मा पहनता था , जब मैं सब कुछ बदल सकता था !

मैं आर्थिक तंगी के उस दौर मैं पैदा हुआ जब सिर्फ कुछ हफ्तों के अनाज के लिए जमीने बेच दी गयी ! बकौल के हमने उस काम को किया होता , जो हमारे बडे सालों से करते रहे ! पर हम इज्ज़त दार लोग थे , किसानी मजदूरी हमारे देश में हीन लोगों का काम समझा जाने लगा था और ऐसे ही हम गरीबी की चादर को और बड़ा करते रहे !

मुझे बिस्तर की गरम चादर बहुत पसंद थी इतनी की अगर कोई बात मुझे परेशानी में डालती तो मैं उसे अपने ऊपर सजाकर घंटों के लिए हंसी सपनो में खो जाता ! यकीनन मुझे इससे बेहतर साथी कभी नही मिला ! सारी  फ़िक्र घंटो के लिए गायब ! थोड़ी बहुत आमदनी से घर का गुजारा  करता ! सफ़ेद कपड़े और बढ़िया टोपी पहनकर इज्जतदार होने का दम भरता !
                   
                    पर ये सब उस वक़्त तक ठीक से चलता रहा जब तक मैं रुपयों में पहचान कर सकता था ! आज मेरी आँखे सिर्फ काले और गोरे का फर्क पहचानती है , वो भी इत्मिनान करने के बाद ! मदद के लिए पुकारना मुझे कभी गवारा नही था , पर  न जाने क्यू लोग मेरी आँखों में देखकर खुद अपना हाथ आगे कर  देते ! शायद मैंने कभी उनकी मदद की होगी !

                    नहीं ! आज कई बरसों के बाद मैंने अपने आपको आईने में देखा ! आखों में पुकारती बेबसी देखी
और तब समझ पाया कि मैं कितनी देर तक उस चादर के अंदर सोता रहा ! ये एक सच था जो मुझे जिंदगी के लम्बे गुजरे वक़्त के बाद पता चला ! काश.……


                                                                                               जाफर खान




                                                           

Thursday, January 15, 2015

आधी रात का पन्ना ... "My Last Letter"

आधी रात का पन्ना 















१२ दिसंबर सन ८८ ... 

                                    खिड़की के बाहर आज की सुबह बहुत खुश थी ! पर मैं देखता हूँ घर के चारों तरफ फैली उदासी ,सूनापन ! धुंधली सी तुम्हारी यादें , और मेरी बेबाक गुजरी जिंदगी ! बहुत से सवाल है अंदर , पर मेरे पास वक़्त नही ! तुम्हारे साथ जीने की ख्वाहिश और अकेली जिंदगी सब फिसल रहा है , रेत  की तरह ! जैसे तुम कहा  करती थी मुझसे .......  कभी कभी आईने के सामने खड़े होकर कोशिश जरूर करता हूँ , अपने चेहरे के भाव बदलने की... खुश दिखने की ...... पर ..... पर एक ही भाव चेहरे को ढके हुए है ! ख़ामोशी का !! इस बेजान घर की तरह !! उम्र की थकान हावी है मुझपर !
                                    सुनो ....... पिछले कुछ दिनों से कुछ लिखने लगा हूँ , अपनी यादें , या यूँ कहो की हमारा वक़्त ! कुछ पन्ने जो शायद कुछ कह पायें तुमसे !!
                                                         आधी रात का वक़्त है ! बेवफा नींद ने इजाजत दी है मुझे , जागने की , आखरी  रात के लिए ! तुझे सोचने के लिए ! मन शांत है और देख रहा है मुस्कुराते हुए हमारी  जवानी को … एक दूसरे के लिए जीते हुए ! हां , मैं सच जानता हुँ ! ये वही वहम है जो शायद मौत से पहले की ख्वाहिश का होता है ! और मैं तैयार हुं , इस अंत के लिए ! इस वहम  के साथ .... "तेरे साथ" .... 

 I will meet you yet again ... 

                                                                                    जाफर खान 










Monday, November 3, 2014

उसी की तरह



वो अब लौटा भी है , और मुझसे मिला उसी की तरह !
मुझे धोखा हुआ , लगता है वो उसी की तरह !!

हर एक रंग , नजर , आँखों की मस्ती भी वही !
समझना  मुश्किल हुआ , वही है या उसी की तरह !!

पसंद नापसंद , मुझको ही मालूम सभी !
अजीब बात है , उसकी  भी पसंद उसी की तरह !!

मुझे फिर देखकर , शायद मिज़ाज़ बदला उसका !
खिलखिलाया तो नही , मुस्का रहा उसी की तरह !!

झुकी नजर से मुझे , छोड़कर गया था कभी !
झुकाये नजरे खड़ा , लग रहा उसी की तरह !!

उदास लौट रहा , जैसे की चाहता है मुझे !
उसे पता ही नही , मैं खुद हो गया उसी की तरह !!

उसे पता ही नही , मैं खुद हो गया उसी की तरह !!


                                                                        जाफर खान



Tuesday, June 17, 2014

सुधरना चाहता हुँ अब

किये वादे वो तुझसे थे , मुकरना चाहता हुँ अब !
कोई तल्खी नही दिखती , सुधरना चाहता हुँ अब !!

वफादारी , ख़ुसूसे दिल्लगी , अब अच्छी नही लगती !
तेरे जैसों  की सूरत में , बदलना चाहता हूँ अब !!

कोई पूछेगा जो हमसे , बड़े बेबाक कह देंगे !
मेरे बाबा की ख़ाहिश थी, वो बनना चाहता हूँ अब !!

संभलते है , संभल जायेंगे , रिश्ते जहानों में !
तेरी खातिर , तेरा होकर , सम्भलना चाहता हूँ अब !!

किये वादे वो तुझसे थे , मुकरना चाहता हुँ अब !
कोई तल्खी नही दिखती , सुधरना चाहता हुँ अब !!

                                                  जाफर खान